हज़रत अबू सईद गंगोही रहमतुल्लाह अलैह |
क़ुतुबे इरशाद हज़रत शैख़ अबू सईद गंगोही चिश्ती साबरी बिन शैख़ नूर उद्दीन बिन शैख़ अब्दुल कुद्दूस गंगोही रह हज़रत क़ुतुबे आलम अब्दुल कुद्दूस के पोते और हज़रत शैख़ जलाल उद्दीन थान्सेरी के नवासे हैं,आप की ज़ात मारिफत हक़ में बहेर बे किनार है,इबादत व रियाज़त के सबब से आप पर अनवार आलम मलकूत आलम जबरूत आलम लाहूत खुलने लगे मगर हज़रत अबू सईद गंगोही तालिबे ज़ाते हक थे इसी लिए उन अनवार की तरफ मुतवज्जा न होते थे,और ھل من مزید का दम भरते थे.
बैत व खिलाफ़त
हज़रत शैख़ जलाल उद्दीन थान्सेरी रह ने अपनी हयात ही में आपको अपने खलीफ़ा और जानशीन हज़रत निज़ाम उद्दीन बल्खी रह के सुपुर्द कर दिय था.आप हज़रत निज़ाम उद्दीन बल्खी के दस्ते हक़ परस्त पर बैत हुए और इबादत व रियाज़त में मज़ीद मश्गुलियत इख्तेयार की हज़रत ने आपको खिर्क़ा खिलाफ़त से सरफ़राज़ फ़रमाया.
इबादत व रियाज़त
जिस वक़्त आप अपने पीरो मुर्शिद हज़रत शैख़ निज़ाम उद्दीन रह की खिदमत में बल्ख पहोंचे तो हज़रत शैख़ निज़ाम उद्दीन ने मुर्शिद ज़ादा होने की हैसियत से आप का नेहायत ही शानदार इस्तेकबाल किया और नेहायत ही ताज़ीम से हज़रत अबू सईद रह को मसनद पे बैठाया और बड़े ही अच्छे तरीक़े से महमान नावाज़ी की जब ये मालूम हुआ के वह फैज़ व इरफ़ान हासिल करने आये हैं तो हज़रत निज़ाम उद्दीन बल्खी ने आपको शगुल सह पाया की तालीम दी और आला दर्जे की रियाज़त और मुजाहिदा लेना शुरू कर दिया,हज़रत अबू सईद रह ने बारह साल शुगल सह पाया पर ऐसी महनत व मुशक्कत की के नेहायत के दर्जे को पहोंचाया मगर मक़सूद ए हकीकी जैसा के चाहिए था हासिल न हुआ आखिर ये मामला किया,
हज़रत शैख़ निज़ाम उद्दीन रह ने फ़रमाया ऐ अबू सईद तुझ में अभी कुछ खुद पसंदी मौजूद है जो माबूद हकीकी तक पहोंचने में रुकावट बनती है इस लिए नफ्स को ज़लील करने की ज़रूरत है,
चुनांचे आप के पीरो मुर्शिद ने आप को कुत्तों मुहाफिज़त और निगहबानी पर कर के शिकारी कुत्ते आप क सुपुर्द कर दिए,आप कुत्तों के सारा सारा दिन महनत करते थे इस में आप की बड़ी नफ्स कशी हुयी बाज़ दफा आप कुत्तों को सैर कराने के लिए निकलते तो कुत्ते आपको गारे कीचड़ में घसीट कर दूर तक ले जाते और आप घसीटते हुए चले जाते,इस काम में आपने बड़ी ज़िल्लत व ख़वारी उठाई,आखिर ये देख के आपके पीर मुर्शिद का दरिया ऐ रहमत जोश में आया और मकसूद ऐ हकीकी ने जलवा फ़रमाया और तजल्ली ऐ ज़ात से मुशर्रफ हुए,हज़रत निज़ाम उद्दीन रह ये हाल देख कर खुश हो गये,और फ़रमाया ऐ अबू सईद शरफ ऐ विलायत मोहम्मदी सल्लल्लाहो अलैहे वसल्लम में दाखिल होने के इब्तेदा ऐ लाहुत है मुबारक हो,और इन्तहा ऐ विलायत मोहम्मदी सल्लल्लाहो अलैहे वसल्लम जो आखरी लाहुत है,वोह अभी दूर है,इस लिए बदस्तूर शगुल सह पाया के पाबन्द रहो,पीरो मुर्शिद का ये फरमान सुनकर आप दोबारा एक मुद्दत कमाल जद्दो जेहद से रेयाज़त में मसरूफ रहे,मगर जिस मुकाम का पता पीरो मुर्शिद ने बताया था इस पर सरफ़राज़ न होने से बे क़रार होते रहे,और अंजाम का कमाल बे ताबी में जान कुर्बान करके और हस्ती से गुज़र जाने का इरादा करके शगुल सह पाया शुरु किया,और नियत कर ली जब तक असल मकसूद हासिल न होगा सांस नहीं लूँगा अगर इस राह में दम निकल जाये तो परवाह नहीं इस के बाद आपने सख्त महनत व रियाज़त शुरू कर दी फिर एक मुकाम ऐसा गुज़रा के नूर आलम ऐ अत्लाक़ ने आप पर ज़ुह्र किया और आपकी हस्ती को नेस्तो नाबुद किया इस बेक़रारी और इज़तेराब के आलम में सांस छुट गया और इस ज़र्ब से आपका पहलु मुबारक रेज़ा रेज़ा हो गया तमाम पेट से खून बहने लगा 2 दिन और 2 रात मगलूब उल हाल रहे तीसरे दिन अफाक़ा होने पर पहलु के टूटने हाल मालूम हुआ,फ़ौरन कहा अल्हम्दुलिल्लाह दोस्त की राह में मेरा पहलु टुटा पहलु टूटने पर आप अल्लाह रब्बुल इज्ज़त की बारगाह में शुक्र अदा करना था के अल्लाह की तरफ से बिला वास्ता इल्हाम हुआ के ऐ अबू सईद जब तूने अपनी जान हमारी राह में कुरबान कर दी और इस मुजाहिदे में साबित क़दम रहा तो हमारी तरफ से ये खुशखबरी हो के मैं तुझे अभी जिंदा करता हूँ और ये दावा ले आपने मुहं खोला और दस्त ऐ गैब ने मुंह में दावा दाल दी तमाम खून पेट से साफ़ हो गया और पहलु भी फ़ौरन ठीक हो गया,
गंगोह शरीफ में आमद
हज़रत अबू सईद गंगोही रह जब अपने पीरो मुर्शिद से खिर्क़ा ख़िलाफ़त हासिल करने के बाद अपने वतन गंगोह शरीफ पहोचे तो आपने अपनी जिंदगी गुमनामी में बसर करनी चाही मगर आपके चहरे से जो अनवार ऐ इलाही ज़ाहिर हुए थे इसकी वजह से आपकी शोहरत हो गयी क्यूंकि इरफ़ान कभी छुपा नहीं करता मुल्क के चारों तरफ से तालिबाने खुदा आप की खिदमत में आ पहोंचे और हज़ारों लोग नेमत बातिन से सरफ़राज़ हो गये,गंगोह शरीफ में पहुँचने के बाद ये मालूम होता था के गोया अज सर नों ज़माना फैज़ शाना हज़रत क़ुतुबे आलम अब्दुल कुद्दूस गंगोही रह का दौर फिर आ गया,
विसाल ब कमाल
1049 हिजरी 1 रबी उस सानी और बाज़ के नजदीक 2 रबी उस सानी है मज़ार फैज़ आसार गंगोह शरीफ जिला सहारनपुर में मर्जाए ख़ास व आम है जहां हाजरी दे कर अहल दिल हजरात अपने क़ुलूब को नूरो ईमान से मुनव्वर करते हैं
खुलफा
आप के खुलफ़ा में तीन खलीफ़ा ज्यादा मशहूर हैं और तीनों से सलासिल तरीकत जारी है,
खलीफ़ा अव्वल जो आपके सज्जदाहनशीन भी हैं हज़रत शैख़ मोहम्मद सादिक़ महबूबे इलाही,
खलीफ़ा दोम शैख़ उल कबीर हज़रत शाह मुहिबउल्लाह इलाहाबादी,
खलीफ़ा सोम शैख़ इब्राहीम रामपुरी,
हवाला
तारीखे माशाएख चिश्त,
ख्वाजगाने चिश्त,
इक्तेबास उल अनवार,
अनवार उल आशिकीन,