हज़रत ख्वाजा निज़ाम उद्दीन बलखी साबरी रह• |
आप हिन्दुस्तान के बहुत बड़े वली अल्लाह थे ज़ाहिरी व बातिनी तसर्रुफ़ के मालिक थे,मजहबन हनफ़ी थे और चिश्ती साबरी थे आपकी सिलसिला ए नसब हज़रत उमर फारूक रअ से जा कर मिलता है,
आप हज़रत शैख़ जलाल उद्दीन थान्सेरी के भतीजे और दामाद भी थे खलीफ़ा भी थे और जानाशीन भी थे और आप ही सज्जादा नशीन भी थे,आपने ज़ाहिरी उलूम में उस्ताद से एक सबक़ न पढ़ा था लेकिन अल्लाह ताअला ने उन्हें इल्म से नवाज़ा था और आप पर ज़ाहिरी और बातिनी उलूम के कमालात मुन्कशिफ हो गए थे आप बड़े बुलंद हक़ाएक और नुक्ते बयान किया करते थे आपकी गुफ्तगू मोती की लड़ियाँ थी उम्मी होने के बावजूद आपकी तसानीफ़ शरह लमहात मक्की व मदनी बड़ी मशहूर हुयी एक रिसाला ए हकीक़त लतीफा बातिन वजूद लिखा रियाज़ उल क़ुद्स के नाम से कुरान के आखरी दो सिपारे की तफसीर लिखी उलमा ए बल्ख के एतारज़ात का जवाब रिसाला ए बल्खी में दिया,
समां के जवाज़ में एक मुकम्मल किताब लिखी आप को सिलसिला ऐ चिश्तिया में ख़ास मक़ाम हासिल था वोह बात करने में किसी के मुक़ल्लिद नहीं थे जो उन पर अल्लाह की तरफ से कश्फ़ होता था वोह अपनी किताबों में लिख दिया करते थे वह शरीअत और तरीकत के उलूम अपने वक्त के तमाम उलमा से बढ़ गए थे इन उलूम के इलावा आपको इल्म ए कीमियां व सिमीयाँ में बड़ी महारत थी ,गैब के खजानें ज़मींन में दबे हुए सोना चांदी के ज़खीरे आप को नजर आ जाते थे,
अपने पीरो मुर्शिद के वफात के बाद सज्जादा नशीन बने तो आप की करामातें दुनियां में फ़ैल गयी शहजादा सलीम नूर उद्दीन मोहम्मद जहाँगीर बादशाह आपका बड़ा मोताकिद था उन्होंने ही उसे हिन्दुस्तान की बादशाही की बशारत दी थी जब अकबर बादशाह १०१४ हिजरी में मर गया तो शहजादा सलीम जहाँगीर शाह के ख़िताब से तख़्त नशीन हुआ उस का लड़का शहजादा खुसरो बाप के खिलाफ उठ खड़ा हुआ और बगावत कर के अकबराबाद से पंजाब की तरफ बढ़ा रास्ते में थान्सेर के मक़ाम पर हज़रत शैख़ निज़ाम उद्दीन की खिदमत में हाज़िर हुआ और दुआ करायी हज़रत शैख़ ने उसे बहोत अच्छी नसीहतें दी ओर फ़रमाया के बाप के खिलाफ बगावत करने से बाज़ आ जाओ मगर आपकी ये बातें शहज़ादा खुसरो के दिमाग में न आयी वह वहाँ से अपना लश्कर ले कर दरया ए ब्यास की तरफ चला गया उस वक्त हज़रत शैख़ निज़ाम उद्दीन के मुखालिफों ने मौक़े से फ़ायदा उठाया और शैख़ के खिलाफ बोहतान तराजी करके बादशाह जहाँगीर तक ये बात पहुचाई के शैख़ खुसरो शाह को सल्तनत दिलाने के लिए दुआ कर रहे हैं और उन्हें सल्तनत की बशारत भी दे दी है ये बात सुन कर जहांगीर बहुत खफा हुआ और उसने दिल में फैसला कर लिया की शैख़ को हिन्दुस्तान से बाहर निकाल दिया जाये ता के वोह फिर यहाँ न आयें शैख़ इस वाकिये से पहले ही हज बैत उल्लाह का इरादा कर लिए थे वोह हिन्दुस्तान से उठे और काबा तुल्लाह की तरफ रवाना हुए पहले मक्का पहुंचे हज अदा किया और फिर मदीना पाक की हाज़री दी और कई साल वहीँ कयाम किया और वहाँ ही आपने शरह व लमहात लिखी जिस में हुज़ूर ए पाक के रूहानी इशारे पर रुखसत हो कर बल्ख को चले गये और वहाँ कुछ अरसे मुकीम रहे वहाँ आपने सात सो लोगों को कमाल तक पहुंचाया उन दिनों बलख के बादशाह इमाम कुली खान उज़बेक भी आपके हल्क़े इरादत मैं आये इस तरह बहोत बड़ी मखलूक उलमा व मशाएख आपके मुरीद बन गये और आप को बड़ी शोहरत मिली,जिस वक़्त हज़रत ख्वाजा के कमालात की शोहरत बलख में आम हुयी और बादशाह ए वक़्त भी उनका मुरीद हो गया शहर के उलेमा उनसे हसद करने लगे बादशाह को कहा गया की शैख़ निज़ाम उद्दीन सुन्नते रसूल का तारिक है वोह नमाज़े जुमा अदा करने के लिए जामा मस्जिद में नहीं आता और अपनी खानकाह में ही नमाज़ अदा कर लेता है हाला के हदीस में आया है की एक शहर में दो मकामात पर नमाज़े जुमा जाएज़ नही बादशाह ने हज़रत शैख़ से पूछा तो आपने फरमाया आप का इमाम राफजी है मैं उसके पीछे नमाज़ नहीं पढ़ सकता क्यूँ के मेरी नमाज़ राफजी के पीछे नहीं होती ये सुन कर बलख के लोगों में हंगामा हो गया उन्होंने कहा की अगर शैख़ निज़ाम उद्दीन ने इमाम राफजी होना साबित न कर सके तो उन्हें बादशाह कत्ल करने का हुक्म दे बादशाह ये बात सुन कर हजरते शैख़ के पास आया और सारी कैफियत बयान की और आपने सारी बात सुन कर बादशाह को तसल्ली दी और फ़रमाया आप फ़िक्र न करें ये जितने भी मुखालिफीन है ये अपने आमाल की सजा पायेंगे अभी ये बात कर रहे ही थे के शहरियों का एक हुजूम बारा हज़ार अफराद और मुश्तमिल शैख़ की खानकाह के दरवाज़े पे आ गये इमाम खुद नंगी तलवार लिए शैख़ के सामने आया और ज़बान दराजी शुरू कर दी और कहा के आप ने मुझ पर झूटी तोहमत लगायी है मैं आपको कत्ल कर दूंगा तो जाएज़ है हज़रत शैख़ ने बादशाह को कहा इमाम के जूते उतरवा कर उन्हें फाड़ा जाये अभी इसका रफ्ज़ बाहर आ जायेगा बादशाह उठा इमाम के पाओं से उसका जूता उतरवाया और उसको फाड़ा गया और उसमे एक कागज़ निकला जिस में हज़रत उमर और हज़रत उस्मान का नाम लिखा हुआ था शहर वालों ने आपकी ये करामत देखी तो इमाम को वहीँ कत्ल कर दिया तमाम हजरात शैख़ के मुरीद बन गए.एक बार हज़रत शैख़ बलख के पहाड़ के दामन में गए वहां पानी न था नमाज़े जोहर का वक़्त आया तो आपको वजू के लिए पानी न मिला अपना असा पकड़ कर एक पत्थर पर मारा जिस से खुशगवार पानी का चश्मा जारी हो गया ये बात बलख में एक नजूमी ने सुनी वोह कहने लगा की इसमें शैख़ का क्या कमाल है उस वक्त आबी सितारे बुर्जे सुरतान में थे उसकी वजह से पत्थर से पानी निकल आया इस को शैख़ की करामात नहीं समझना चाहिए,किसी मुरीद ने आपको इस नजूमी की बात सुनाई आप खामोश रहे कुछ दिनों बाद शैख़ बलख के जंगलों में सैर करने तशरीफ ले गये और उस नजूमी को भी साथ ले लिया जंगल में पानी नहीं था आप ने नजूमी से पूछा के क्या इस वक्त सितारे बुर्ज सुरतान में है या नहीं नजूमी ने अपने इल्म की वजह से गौर किया के इस वक़्त तो आतिशी सितारे आतिशी बुर्ज में हैं कहीं से पानी बरामद होना मुमकिन नहीं है हज़रत शैख़ ने अपना असा ज़मीन पर मारा और ज़मीन से पानी का एक मीठा चश्मा जारी हो गया नजूमी हैरान रह गया और आपके पाओं पे गिर पड़ा,
एक दिन एक गड़ेरिया जो बिलकुल जाहिल था तालिबे हक के लिए हज़रत शैख़ की खिदमत में आया शैख़ ने उसपे तवज्जो की और उसे जमाये कमाल बना दिया और उसपे दीनी और दुनियावी उलूम के इसरार ज़ाहिर होने लगे.
हज़रत शैख़ 8 माहे रजब उल मुरज्जब बरोज़ जुमा 1037 में फौत हुए आप का मज़ार बलख में है शैख़ आप के दो बेटे ख्वाजा मोहम्मद सईद और अब्दुल हक़ हिन्दुस्तान में आ गए मोहम्मद सईद थानेसर में अब्दुल हक करनाल में रहने लगे.
खुलफ़ा
शैख़ के खुलफ़ा की तादाद बहुत ज़्यादा है जिसमे से हज़रत ख्वाजा अबू सईद गंगोही,
शैख़ हुसैन बहुहरी,
शैख़ वली मोहम्मद नारनौली,
सय्यद अला बख्श लाहोरी,
शैख़ अब्दुल रहमान कश्मीरी,
सय्यद कासिम बुरहानपुरी,
इस्माइल अकबराबादी,
तारीखे माशाएख चिश्त,
ख्वाजगाने चिश्त,
इक्तेबास उल अनवार,
अनवार उल आशिकीन,