इलाहाबाद के निकटवर्ती क्षेत्र के सूफी दायरे पुरातन काल से ही इलाहाबाद उत्तरी भारत का एक महत्वपूर्ण राजनीतिक एवं सांस्कृतिक केंद्र रहा है
जिसकी महिमा वेदों एवं पुराणों में भी वर्णित है। इतिहास एवं परंपरा ने इस नगरी को अमर बना दिया जो भारतीय सभ्यता के उदय से ही आर्यावर्त के गौरव का प्रतीक रही है। यहां के दायरों के सूफियों ने अपने उपदेश के माध्यम से लोगों का चरित्र-निर्माण एवं मार्गदर्शन किया। समय-समय पर यहां तीर्थयात्रियों के अतिरिक्त देश-विदेश के यात्री संन्यासी, कवि, एवं विद्वान आते रहे । शाह मुहिबउल्लाह एवं शाह अजमल सभी इलाहाबाद के सुंदर वातावरण पर मोहित रहे।
इलाहाबाद के दायरे प्रायः शांतिपूर्ण अवस्था में ही अस्तित्व में आए। यह तथ्य इलाहाबाद की जनता के शांतिप्रिय होने का प्रमाण है। जहां इलाहाबाद नगर के साहित्यिक एवं सांस्कृतिक केंद्र होने का वर्णन किया जाता है वहीं यहां के दायरों एवं सूफियों का वर्णन भी अवश्य ध्यान को आकर्षित करता है। इस नगर में प्रारंभ से ही सूफियों ने जहां एक ओर अपनी धार्मिक शिक्षाओं से लोगों के मस्तिष्क को प्रकाशित किया वहीं साहित्यिक क्षेत्र में भी उन्होंने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। दायरे इसलाम धर्म के सिद्धांतों की शिक्षा देते हुए भी हिंदू धर्म के प्रति सदैव उदार भावना रखते रहे और उनका कोई भी कदम ऐसा नहीं उठा जो किसी की भावनाओं को ठेस पहुंचाए। इलाहाबाद की भक्ति-भावना से रंजित वातावरण का प्रभाव यहां की मुसलिम जनता पर भी पड़ा ऐसा कहा जाता है । इलाहाबाद के अस्तित्व में आने के पूर्व से ही यहां स्थापित अनेक सूफियों के निवास स्थान का पता चलता है जिनमें कड़ा, झूसी, हंडिया और फूलपुर विशेष महत्व के हैं। दायरों की संख्या पर विचार किया जाए तो इलाहाबाद में अन्य जनपदों की अपेक्षा कहीं अधिक दायरे अथवा खानकाहें अस्तित्व में हैं। कुछ दायरे अकबर के शासनकाल में ही अस्तित्व में आ चुकी थीं और दायरे के पारिवारिक सदस्यों को राजकीय सहायता भी प्राप्त थी।
जिसका विवरण शाह रफी उज्जमां से सम्बन्धित अध्याय में दिया गया है। इतना अवश्य कहा जा सकता है कि ईश्वर भक्ति में डूबी हिन्दू और मुसलमान जनता सदैव ही बन्धुत्व की डोरी में बधी रही। यदि कुछ मनोमालिन्य की भावना देखने मे आई तो वह अग्रेजों के युग में हुई और उनके राजनीतिक स्वार्थों के फलस्वरूप ही हुई।
इलाहाबाद के मुसलमानों ने 1857 के स्वतत्रता सग्राम और बाद के सभी आन्दोलनों में जिस उत्साह से भाग लिया और कुर्बानिया दी वह आज भी भारत के इतिहास में देखी जा सकती है। इलाहाबाद के प्रमुख दायरे भक्ति आन्दोलन के युग में ही अस्तित्व मे आए। कबीर-तुलसी सूर-चैतन्य महाप्रभु ने भक्तिरस का जो स्रोत उत्तर भारत में प्रवाहित किया उसका प्रभाव इलाहाबाद पर भी पड़े बिना नहीं रहा। प्रभू भक्ति दो स्थितियो मे ही उत्कर्ष प्राप्त करती है एक तो अत्यन्त शान्तिपूर्ण स्थिति मे जब भक्त का हृदय प्रभु की कृपा एवं दयालुता के लिए उसे धन्यवाद देता अथवा उथल पुथल एवं विषमता पूर्ण स्थिति मे ऋण पाने के लिए भगवान का स्मरण करता है इलाहाबाद के दायरे प्रायः शान्तिपूर्ण अवस्था मे ही अस्तित्व मे आए। यह तथ्य इलाहाबाद की जनता के शान्तिप्रिय होने का प्रमाण है। जहां इलाहाबाद नगर के साहित्यिक एवं सांस्कृतिक केन्द्र होने का वर्णन किया जाता है वहीं यहां के दायरों एवं सूफियों का वर्णन भी अवश्य ध्यान को आकर्षित करता है। इस सूबे में प्रारम्भ से ही सूफियों ने जहां एक ओर अपनी धार्मिक शिक्षाओं से लोगों के मस्तिष्क को प्रकाशित किया वहीं साहित्यिक क्षेत्र में भी उन्होंने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। दायरे इस्लाम धर्म के सिद्धान्तों की शिक्षा देते हुए भी हिन्दू धर्म के प्रति सदैव उदार भावना रखते रहे और उनका कोई भी कदम ऐसा नहीं उठा जो किसी की भावनाओं को ठेस पहुंचाए।